Thursday, 16 January 2020

अवश्य जानिए



आध्यात्मिक दृष्टि से भक्ति न करने से क्या हानि होती है?

भक्ति न करने से होने वाले हानि का विवरण :-

यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।
नर-नारायण देहि पाय कर, फेर चौरासी जांही।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रह के नांही।।
जा सतगुरू की मैं बलिहारी, जो जामण मरण मिटाहीं।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला, मसलित एक ठहराहीं।
बाँध पींजरी आगै धर लिया, मरघट कूँ ले जाहीं।।
अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठाहीं।
पुराण उठा फिर पण्डित आए, पीछे गरूड पढाहीं।।

भावार्थ :- यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाऐंगे। उसी दिन यह शरीर रूपी पिण्ड छूट जाएगा। फिर परमात्मा के दरबार में पाप-पुण्यों का हिसाब होगा। भक्ति न करने वाले या शास्त्राविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाऐंगे, चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो, उसकी पिटाई की जाएगी। सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे। सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल बयान कर रहे हैं कि :- हे मानव! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है। अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर चौरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है, धिक्कार है तेरे मानव जीवन को! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है, डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं। मैं तो भक्ति करते-करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए। आप तो भक्ति ही नहीं करते। यदि करते हो तो शास्त्राविरूद्ध कर रहे हो। तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म-मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे, समाप्त कर दे। जो सत्य भक्ति नहीं करते, उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात्।
आस-पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। फिर सबकी एक ही मसलत अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ। (उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूँक देते हैं, लाठी या जैली की खोद (ठोकर) मार-मारकर छाती तोड़ते हैं। सम्पूर्ण शरीर को जला देते हैं। जो कुछ भी जेब में होता है, उसको निकाल लेते हैं। फिर शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं।) तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीव चला गया। परमात्मा के दरबार में उसका हिसाब होगा। वह कर्मानुसार कहीं गधा-कुत्ता बनने की पंक्ति में खड़ा होगा। मृत्यु के पश्चात् गरूड पुराण का पाठ उसके क्या काम आएगा। यह व्यर्थ का शास्त्राविरूद्ध क्रियाक्रम है। उस प्राणी का
मनुष्य शरीर रहते उसको भगवान के संविधान का ज्ञान करना चाहिए था। जिससे उसको अच्छे-बुरे का ज्ञान होता और वह अपना मानव जीवन सफल करता।

प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।

भावार्थ है कि मृत्यु उपरान्त उस जीव के कल्याण अर्थात् गति कराने के की जाने वाली शास्त्राविरूद्ध क्रियाऐं व्यर्थ हैं। जैसे गरूड पुराण का पाठ करवाया। उस मरने वाले की गति अर्थात् मोक्ष के लिए। फिर अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की उसकी गति (मोक्ष) करवाने के लिए। फिर तेहरवीं या सतरहवीं को हवन व भण्डारा (लंगर) किया उसकी गति कराने के लिए। पहले प्रत्येक महीने एक वर्ष तक महीना क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर छठे महीने
छःमाही क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर वर्षी क्रिया करते थे उसकी गति कराने के लिए, फिर उसकी पिण्डोदक क्रिया कराते हैं, उसकी गति कराने के लिए श्राद्ध निकालते हैं अर्थात् श्राद्ध क्रिया कराते हैं, श्राद्ध वाले दिन पुरोहित भोजन स्वयं बनाता है और कहता है कि कुछ भोजन मकान की छत पर रखो, कहीं आपका पिता कौआ (काग) न बन गया हो। जब कौवा भोजन खा जाता तो कहते हैं कि तेरे पिता या माता आदि जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका है जिसके हेतु यह सर्व क्रिया की गई है और यह श्राद्ध किया गया है। वह कौवा बना है, इसका श्राद्ध सफल हो गया। इस उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि वह व्यक्ति जिसका उपरोक्त क्रियाकर्म किया था, वह कौवा बन चुका है। श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है।
विचार करें :- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर
भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
दूसरी बात :- मृत्यु के पश्चात् की गई सर्व क्रियाऐं गति (मोक्ष) कराने के उद्देश्य से की गई थी। उन ज्ञानहीन गुरूओं ने अन्त में कौवा बनवाकर छोड़ा। वह प्रेत शिला पर प्रेत योनि भोग रहा है। पीछे से गुरू और कौवा मौज से भोजन कर रहा है। पिण्ड भराने का लाभ बताया है कि प्रेत योनि छूट जाती है। मान लें प्रेत योनि छूट गई। फिर वह गधा या बैल बन गया तो क्या गति कराई?

नर से फिर पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।

मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्राविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरडि़यों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
सन्त गरीब दास ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में आगे कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो उपरोक्त सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते। अमरपुरी पर आसन होता अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित सनातन परम धाम प्राप्त होता, परम शान्ति प्राप्त हो जाती। फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मरण का कष्टदायक चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता। उस अमर लोक (सत्यलोक) में धूप-छाया नहीं है अर्थात् जैसे धूप दुःखदाई हुई तो छाया की आवश्यकता पड़ी। उस सत्यलोक में केवल सुख है, दुःख नहीं है।

सुरत निरत मन पवन पयाना, शब्दै शब्द समाई।
गरीब दास गलतान महल में, मिले कबीर गोसांई।।

सन्त गरीबदास जी ने कहा है कि मुझे कबीर परमेश्वर मिले हैं। मुझे सुरत-निरत, मन तथा श्वांस पर ध्यान रखकर नाम का स्मरण करने की विधि बताई। जिस साधना से सतलोक में हो रही शब्द धुनि को पकड़कर सतलोक में चला गया। जिस कारण से सत्यलोक (शाश्वत स्थान) में अपने महल में आनन्द से रहता हूँ क्योंकि सत्य साधना जो परमेश्वर कबीर जी ने सन्त गरीब दास को जो बताई थी और उस स्थान (सत्यलोक) को गरीब दास जी परमेश्वर के साथ जाकर देखकर आए थे। जिस कारण से विश्वास के साथ कहा कि मैं जो शास्त्रानुकूल साधना कर रहा हूँ, यह परमात्मा ने बताई है। जिस शब्द अर्थात् नाम का जाप करने से मैं अवश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्त करूँगा, इसमें कोई संशय नहीं रहा। जिस कारण से मैं (गरीब दास) सत्यलोक में बने अपने महल (विशाल घर) में जाऊँगा, जिस कारण से निश्चिन्त तथा गलतान (महल प्राप्ति की खुशी में मस्त) हूँ क्योंकि मुझे पूर्ण गुरू स्वयं परमात्मा कबीर जी अपने लोक से आकर मिले हैं।

गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरू आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।

भावार्थ :- गरीबदास जी ने बताया है कि सतगुरू अर्थात् स्वयं परमेश्वर कबीर जी अपने निज धाम सत्यलोक से आकर मुझे साथ लेकर अजब (अद्भुत) नगर में अर्थात् सत्यलोक में बने शहर में ले गए। उस स्थान को आँखों देखकर मैं परमात्मा के बताए भक्ति मार्ग पर चल रहा हूँ। सत्यनाम, सारनाम की साधना कर रहा हूँ। इसलिए चादर तानकर सो रहा हूँ अर्थात् मेरे मोक्ष में कोई संदेह नहीं है।
चादर तानकर सोना = निश्चिंत होकर रहना। जिसका कोई कार्य शेष न हो और कोई चादर ओढ़कर सो रहा हो तो गाँव में कहते है कि अच्छा चादर तानकर सो रहा है। क्या कोई कार्य नहीं है? इसी प्रकार गरीबदास जी ने कहा है कि अब बडे़-बडे़ महल बनाना व्यर्थ लग रहा है। अब तो उस सत्यलोक में जाऐंगे। जहाँ बने बनाए विशाल भवन हैं, जिनको हम छोड़कर गलती करके यहाँ काल के मृत्यु लोक में आ गए हैं। अब दॉव लगा है। सत्य भक्ति मिली है तथा तत्वज्ञान मिला है।
सज्जनों! वह सत्य भक्ति वर्तमान में (रामपाल दास के) पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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Monday, 5 November 2018

कबीर भगवान द्वारा समुंदर को रोकना और जगन्नाथ मंदिर बनवाना-


Kabir Is God

जगन्नाथ के मंदिर में छुआ छात और मूर्ति पूजा क्यों नही है ?                                 

 Sant Rampal Ji बताते है कि उड़ीसा में पूरी का राजा इंदर दमन था जो कृष्ण जी का भगत था उसे कृष्ण जी ने स्वपन में दर्शन देकर समुन्दर के किनारे  एक मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया।
 राजा ने पांच बार  मंदिर बनवाया और समुन्दर ने पांचो बार मंदिर को तोड़ दिया। अब काल निरंजन ने Kabi is God से प्राथना कि की हे पूर्ण ब्रह्म आपने मुझे तीन वचन दिए थे उनमें से एक ये भी था की आप समुन्दर किनारे मेरे अंश विष्णु  का एक मंदिर बनवाओगे।

तब Kabir is God राजा इंद्रदमन के पास गए और कहा राजन अब मंदिर बनवाओ समुन्दर उसे तोड़ नही पायेगा राजा बोला अब मेरे पास इतने पैसे नही है कि में मंदिर बनवा सकू।



तब Kabir is God  ने स्थान बता दिया मैं वहाँ बैठा हूँ तुम सोच समझकर बता देना उसी रात कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में दर्शन दिए और कहा की इस साधु में बड़ी शक्ति है और कोई नही है तुम उनके पैरो में पड़कर प्राथना करो और मंदिर बनवाओ अब समुन्दर मंदिर को नही तोड़ पायेगा ।

अब रानी ने भी अपने सारे गहने मंदिर बनवाने के लिए राजा को दे दिए और राजा ने Kabir is God से प्राथना की और मंदिर बनवाने का काम चालू कर दिया

किसने बचाया जगन्नाथपुरी का मंदिर

Kabir is God जहा से समुन्दर का जल मंदिर को तोड़ने आता था वहां रास्ते में बैठ गए अब समुन्दर प्रकट हुआ और Kabir is God से बोला  है भगवन आप पूर्ण शक्ति हो आपके होते में मंदिर को नही तोड़ सकता कृपया मुझे रास्ता दे ये विष्नु जब त्रेता युग में राम के रूप में था तो इसने मुझे बर्बाद करने के लिए अग्नि बाण निकाल कर मेरी बेइज्जती की थी,अब में इसका मंदिर नही बनने दूंगा।

समुंद्र द्वारा जगन्नाथपुरी के मंदिर को तोड़ना

तब Kabir is God ने कहा तुम अपना बदला इसकी द्वारका डुबो कर पूरा कर लो उस समय द्वारका ख़ाली पड़ी थी तब समुन्दर ने द्वारका को डुबो दीया था।

जगन्नाथपुरी के पांडे को श्राप क्यों मिला ?

अब Kabir is God बोले राजन इस मंदिर में कभी छुआ छात और  मूर्ति पूजा नही करनी यहां भगवन का सत्संग करना लेकिन गोरखनाथ के दबाव में आकर जब राजा ने मूर्ति बनवानी चाही तो कोई भी कारीगर मूर्ति नही बना पाया मूर्ति पूरी बनने से पहले ही टूट जाती थी।

वो बूढ़ा कारीगर कौन था जिसमे मूर्तियाँ बनाई ?

तब Kabir is God एक बूढ़े कारीगर का रूप बनाकर राजा के पास गए और बोले जब तक में मूर्ति न बना लू कोई दरवाजा नही खोलेगा अब कुछ समय बाद गोरखनाथ फिर आये और बोले क्या मूर्ति बन गयी राजा ने सारी बात बताई तो गोरख बोला नही में देखूंगा की मूर्ति कैसी बन रही है और ये कहकर दरवाजा खोल दिया।
Visit साधना TV 7:30 pm से

अब Kabir is God कारीगर रूप में गायब हो गए कृष्ण  बलराम और सुभद्रा की मूर्ति के पैर और हाथ बनाना बाकि थे गोरखनाथ ने भी जोर लगा लिया इतने कारीगर भी हो लिये पर आज तक कोई उन मूर्तियों के हाथ पैर नही लगा पाया और अधूरी मूर्ति की कभी पूजा नही होती और Kabir is God ने जहा बैठकर समुन्दर को रोका था वहाँ आज भी कबीर चबूतरा बना हुआ है।
इसीलिए Who is GOD ?
Kabir is Supreme God !http://www.jagatgururampalji.org

Sunday, 4 November 2018

Kabir is God द्वारा समुंदर को रोकना और जगन्नाथ मंदिर बनवाना-


Kabir Is God

जगन्नाथ के मंदिर में छुआ छात और मूर्ति पूजा क्यों नही है ?                  

               


मेरे गुरु जी Sant Rampal Ji बताते है कि उड़ीसा में पूरी का राजा इंदर दमन था जो कृष्ण जी का भगत था उसे कृष्ण जी ने स्वपन में दर्शन देकर समुन्दर के किनारे  एक मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया।
 राजा ने पांच बार  मंदिर बनवाया और समुन्दर ने पांचो बार मंदिर को तोड़ दिया। अब काल निरंजन ने Kabi is God से प्राथना कि की हे पूर्ण ब्रह्म आपने मुझे तीन वचन दिए थे उनमें से एक ये भी था की आप समुन्दर किनारे मेरे अंश विष्णु  का एक मंदिर बनवाओगे।

तब Kabir is God राजा इंद्रदमन के पास गए और कहा राजन अब मंदिर बनवाओ समुन्दर उसे तोड़ नही पायेगा राजा बोला अब मेरे पास इतने पैसे नही है कि में मंदिर बनवा सकू।

क्या जगन्नाथपुरी का मंदिर श्री कृष्ण जी द्वारा बनवाया गया ?
तब Kabir is God  ने स्थान बता दिया मैं वहाँ बैठा हूँ तुम सोच समझकर बता देना उसी रात कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में दर्शन दिए और कहा की इस साधु में बड़ी शक्ति है और कोई नही है तुम उनके पैरो में पड़कर प्राथना करो और मंदिर बनवाओ अब समुन्दर मंदिर को नही तोड़ पायेगा ।

अब रानी ने भी अपने सारे गहने मंदिर बनवाने के लिए राजा को दे दिए और राजा ने Kabir is God से प्राथना की और मंदिर बनवाने का काम चालू कर दिया

किसने बचाया जगन्नाथपुरी का मंदिर
Kabir is God जहा से समुन्दर का जल मंदिर को तोड़ने आता था वहां रास्ते में बैठ गए अब समुन्दर प्रकट हुआ और Kabir is God से बोला  है भगवन आप पूर्ण शक्ति हो आपके होते में मंदिर को नही तोड़ सकता कृपया मुझे रास्ता दे ये विष्नु जब त्रेता युग में राम के रूप में था तो इसने मुझे बर्बाद करने के लिए अग्नि बाण निकाल कर मेरी बेइज्जती की थी,अब में इसका मंदिर नही बनने दूंगा।

समुंद्र द्वारा जगन्नाथपुरी के मंदिर को तोड़ना
तब Kabir is God ने कहा तुम अपना बदला इसकी द्वारका डुबो कर पूरा कर लो उस समय द्वारका ख़ाली पड़ी थी तब समुन्दर ने द्वारका को डुबो दीया था।

जगन्नाथपुरी के पांडे को श्राप क्यों मिला ?
अब Kabir is God बोले राजन इस मंदिर में कभी छुआ छात और  मूर्ति पूजा नही करनी यहां भगवन का सत्संग करना लेकिन गोरखनाथ के दबाव में आकर जब राजा ने मूर्ति बनवानी चाही तो कोई भी कारीगर मूर्ति नही बना पाया मूर्ति पूरी बनने से पहले ही टूट जाती थी।

वो बूढ़ा कारीगर कौन था जिसमे मूर्तियाँ बनाई ?
तब Kabir is God एक बूढ़े कारीगर का रूप बनाकर राजा के पास गए और बोले जब तक में मूर्ति न बना लू कोई दरवाजा नही खोलेगा अब कुछ समय बाद गोरखनाथ फिर आये और बोले क्या मूर्ति बन गयी राजा ने सारी बात बताई तो गोरख बोला नही में देखूंगा की मूर्ति कैसी बन रही है और ये कहकर दरवाजा खोल दिया।
Visit साधना TV 7:30 pm से

अब Kabir is God कारीगर रूप में गायब हो गए कृष्ण  बलराम और सुभद्रा की मूर्ति के पैर और हाथ बनाना बाकि थे गोरखनाथ ने भी जोर लगा लिया इतने कारीगर भी हो लिये पर आज तक कोई उन मूर्तियों के हाथ पैर नही लगा पाया और अधूरी मूर्ति की कभी पूजा नही होती और Kabir is God ने जहा बैठकर समुन्दर को रोका था वहाँ आज भी कबीर चबूतरा बना हुआ है।
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Kabir is Supreme God !

Friday, 26 October 2018

भक्ति से पहले जाने इस सच्चाई को

🌎अजीब बात है की परमात्मा  प्राप्ति, दुखो से छुटकारा, एवं मनोकामना पूर्ति मे लाखो लोग अपना पैसा, समय, और श्रद्धा व्यर्थ ही गवा बैठते है ..सर्व मनोकामना पुर्ति के मंत्र पाने के लिए साधु संतो के चक्कर काटते रहते है।🌍

🌏कभी तो बार-बार मंत्र बदलते रहने मे ही मनुष्य जीवन समाप्त हो जाता है | अज्ञानियो ने “ओम नम:शिवाय” मंत्र को अविनाशी, अनुपम, शक्तशाली बताकर जन-मानष के भक्ति मार्ग मे एक अवरोध खड़ा कर दिया | गायंत्री मंत्र को भी अतुल्य, अपार, और अनन्त बताकर भक्तगणो को पुर्ण मोक्ष प्राप्ति से वंचित कर दिया | कथाकार, पंडित, और अल्पज्ञ साधु संतो को वेद शास्त्रो का वास्तविक ग्यान न होने से “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:” मंत्र को ही अद्वितीय, ऐश्वर्यशाली, और सिद्ध मंत्र बताकर मानव को शास्त्रअनुकुल साधना से दूर कर दिया |🌍

🌎जब #समाज पर ऋषि-मुनियो की अल्पज्ञता की गहरी छाप चढ़ी तो जन-जन ने “महाम्रत्युंजय मंत्र” को ही दिर्घायु, शाश्वत, सर्वश्रेष्ठ रक्षामंत्र मान लिया तथा वास्तविक मोक्षदायक मंत्रो से रुबरु ना हो सके | किसी ने तो श्री #गणेश जी के मंत्र को #रिद्धि_सिद्धि प्राप्ति मंत्र, और श्री #दुर्गा जी के निर्वाण मंत्र को सर्वोच्च और जन्म मरण से छुटकारे का उपाय बताकर वास्तविक सतमंत्रो से हमे अपरिचित ही रखा | कुछ नकली गुरुओ ने पांच नाम जाप के दे दिए वो भी “काल” के…| और भी अनेको मंत्र है जिनके पल्ले बंधा है मनुष्य..|  कुछ तो “#राम_राम” कहकर संतुष्ट रहते और कुछ “#जयश्रीकृष्ण” जापकर “#राधे_राधे” की रट लगाते हुए स्वयं को भक्तिमार्ग मे सफल मान बैठे |🌍

🌏जब मंत्रो से भी बात ना बनी तो #तंत्र, यंत्र, का सहारा लेकर भी अपने पूरे जीवनकाल मे सुख-समृध्दी और पूर्ण मोक्ष के लिए हर तरह से हाथ पांव मारे,  लेकिन पूर्ण संत नही मिलने से जैसा भी उपाय हत्थे चढ़ा वैसा कर लिया | कभी अपने विवेक से कोई सदग्रंथ खोलकर देखना चाहा की जीवन मे सुख एवं पुर्ण #मोक्ष प्राप्ति का वह कौन सा सतमंत्र है, जो वास्तव मे हमारे सर्व सदग्रंथो मे प्रमाणित है | जब की उपरोक्त सभी देवताओ के मंत्र किसी भी सदग्रंथ मे प्रमाणित नही है |🌍

🌎विडम्बना है की जीविका उपार्जन, समय और शिक्षा के अभाव मे मनुष्य कभी सदग्रंथो को ना पढ़ सका और ना ही सच का पता लगा सका तो इसी का फायदा उठाकर सर्व #ऋषि-मुनि #संत महंत, #शंकराचार्य , मठाधीश , पीठाधीश और अध्यात्म के ठेकेदारो ने जनता को मूर्ख बनाया | ग्रंथो की सच्चाई से यह नकली, अज्ञानी खुद भी वंचित ही रहे, लेकिन अब संत रामपाल जी महाराज  ने वास्तविक मंत्रो के रहस्य को उजागर करके समाज की बदहाली को खुशहाली मे बदल दिया है |🌍

🌏गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 मे बताया है की  “ओम, तत्, सत”  इन्ही तीन मंत्रो से आप सर्व सुख और पुर्ण मुक्ति प्राप्त कर सकते है, और इतना ही नही बल्कि यह तीन मंत्र भी सांकेतिक है, जो पूर्ण संत से ही प्राप्त हो सकते है | उस #पूर्ण_संत की पहचान गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 मे बताई है, जो #संतरामपालजी महाराज  है और यही सच्चे #मंत्र जन-जन तक बल्कि घर-घर तक पहुँचाने का अथक प्रयास कर रहे है |
#सत_भक्ति_प्रचार

Tuesday, 23 October 2018

अवश्य जानिए !

ब्रह्मा-विष्णु-महेश एवं दुर्गा जी और 33 करोड़ देवी देवता मिल कर भी मौत नहीं रोक पा रहे !!क्या कारण है क्या ये मौत रोकने में समर्थ नहीं तो कौन सी शक्तियां इनसे ऊपर है या ये मौत रोकना ही नहीं चाहते ?
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी अजर-अमर नहीं!!👉पेज-123 श्रीमद्देवीभागवत पुराण,गीताप्रेस गोरखपुर।
जानिए श्री गुरु नानक देव जी के 03 दिनों तक बेई नदी में गायब होने का राज!
जानिए कबीर साहेब के शरीर गायब हो जाने का राज!
गुरु नानक देवी जी ने ये क्यों कहा पेज 721 गुरु ग्रन्थ साहिब-"हक्का कबीर करीम तू बेऐब परवरदिगार" !!
क़ुरआन-शरीफ़ के सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 पे लिखा है : फला तुतिअल काफिरन व् जाहिदहुम् विहि जिहादन कबीरा !
 ऐसे अनेकों रहस्यों और अनसुलझे सवालों के जवाब जानने के लिए कृपया रोज देंखें :-
साधना टीवी-रोज शाम 07:30 से 08:30

Monday, 22 October 2018

कौन है पूर्ण परमात्मा


आज हम अपनी इस पोस्ट में आप जी को दिखाकर सच्चाई से रूबरू कराना चाहते हैं
#पवित्र_गीता_जी_में_भगवान_कृष्ण_जी_अर्जुन_को_किस_की_शरण_मे_जाने_का_आदेश_दे_रहे_है???

हम जब गीता जी पढते है उसमें जगह जगह बहुत से उतार चढ़ाव आते है । कही पर हम यह देखते है की गीता ज्ञान दाता से बडा कोई नही तो कही पर हम यह देखते है की गीता ज्ञान दाता किसी दूसरे प्रभू की शरण में है।
आईये आज हम सच्चाई को सबको लाने की कोशिश करते है इसे जरूर पढे ध्यान से
पवित्र गीता जी ज्ञान दाता जहाँ अपनी महिमा का गुणगान करता है वह अपनी शक्ति का पर्दशन करता है जैसे एक मुख्यमंत्री अपने स्तर का और अपने राज्य क्षेत्र का बहुत विस्तार से वर्णन करता है।
लेकिन जहाँ पर गीता ज्ञान दाता अपने को किसी दूसरे परमात्मा की शरण में बताता है तो स्थिति ऐसी होती है जैसे एक मुख्यमंत्री जी अब महामहिम राष्ट्रपति जी की शक्ति का वर्णन कर रहे हो।
आओ देखते है कुछ श्लोक जिनमे गीता ज्ञान दाता ने खुद की किसी दूसरे परमात्मा की शरण में बताया है अथवा किसी परम शक्ति का वर्णन किया है 👇👇
अ•2 श्लोक 17
अ•8 श्लोक 3
अ•8 श्लोक 9
अ•8 श्लोक 22
अ• 15 श्लोक 4
अ• 15 श्लोक 17
अ• 17 श्लोक 23
अ• 18 श्लोक 46
अ• 18 श्लोक 62
अ• 18 श्लोक 66
हम सभी के घर  मे पवित्र श्री मद् भगवत गीता है हम यह प्रमाण देख सकते है
#कौन_है_वह_परमेश्वर_जिसकी_शरण_में_जाने_को_गीता_ज्ञान_दाता_ने_इसारा_किया_है?
हमारा उद्देश्य भगत समाज को सही भक्ति विधि के बारे में बताना है शास्त्रानुकूल भक्ति के बारे में अवगत कराना है क्योकि सिर्फ मोक्ष शास्त्रानुकूल भक्ति से ही सम्भव है और वह भक्ति हमारे सद्ग्रंथो मे वर्णित है आवश्यकता है बस उसके ध्यान से पढने और समझने की।
मोक्ष सिर्फ शास्त्रानुकूल भक्ति से ही सम्भव है और अगर भक्ति शास्त्रानुकूल नही है तो मोक्ष बहुत दूर की बात हो जाती है फिर
आओ एक दो श्लोक का विश्लेषण करते है
हमारे गीताज्ञान वाचन ,मण्डलेश्वर कहते है भगवान श्री कृष्ण से अतिरिक्त कोई भगवान ही नहीं। कृष्ण जी ही स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं, वे अपनी ही शरण आने के लिए कह रहे हैं, बस कहने का फेर है। कृप्या भ्रम निवारण करें।

उत्तर:- ये माला डाल हुए हैं मुक्ता। षटदल उवा-बाई बकता।

आपके सर्व मण्डलेश्वर अर्थात् तथा शंकराचार्य अट-बट करके भोली जनता को भ्रमित कर रहे हैं। गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन को अपनी शरण में आने को कहता है, यह बिल्कुल गलत है क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि ‘हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर रही है। मैं आप का शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। जो मेरे हित में हो, वह ज्ञान मुझे दीजिए। हे धर्मदास! अर्जुन तो पहले ही श्री कृष्ण की शरण में था। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन तू मेरा भक्त है। इसलिए यह गीता शास्त्रा सुनाया है।

गीता ज्ञान दाता से अन्य पूर्ण परमात्मा का अन्य प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 से 28, 30, 31, 34 में भी है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि शरीर को क्षेत्रा कहते हैैं जो इस क्षेत्रा अर्थात् शरीर को जानता है, उसे “क्षेत्राज्ञ” कहा जाता है। (गीता अध्याय 13 श्लोक 1)

गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि:- मैं क्षेत्राज्ञ हूँ। क्षेत्रा तथा क्षेत्राज्ञ दोनों को जानना ही तत्वज्ञान कहा जाता है, ऐसा मेरा मत है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी भक्ति अव्याभिचारिणी होनी चाहिए। जैसे अन्य देवताओं की साधना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में व्यर्थ कही हैं। केवल ब्रह्म की भक्ति करें। उसके विषय में यहाँ कहा है कि अन्य देवता में आसक्त न हों। भावार्थ है कि भक्ति व मुक्ति के लिए ज्ञान समझें, वक्ता बनने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त वक्ता बनने के लिए ज्ञान सुनना अज्ञान है।

गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से “परम ब्रह्म” का ज्ञान कराया है, जो परमात्मा (ज्ञेयम्) जानने योग्य है, जिसको जानकर (अमृतम् अश्नुते) अमरत्व प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष का अमृत जैसा आनन्द भोगने को मिलता है। उसको भली-भाँति कहूँगा। (तत्) वह दूसरा (ब्रह्म) परमात्मा न तो सत् कहा जाता है अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में कहा है कि जो तत्वज्ञान है, उसमें परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह तत्वज्ञान परमात्मा अपने मुख कमल से स्वयं उच्चारण करके बोलता है। उस तत्वज्ञान को तत्वदर्शी सन्त जानते हैं ।।