आज हम अपनी इस पोस्ट में आप जी को दिखाकर सच्चाई से रूबरू कराना चाहते हैं
#पवित्र_गीता_जी_में_भगवान_कृष्ण_जी_अर्जुन_को_किस_की_शरण_मे_जाने_का_आदेश_दे_रहे_है???
हम जब गीता जी पढते है उसमें जगह जगह बहुत से उतार चढ़ाव आते है । कही पर हम यह देखते है की गीता ज्ञान दाता से बडा कोई नही तो कही पर हम यह देखते है की गीता ज्ञान दाता किसी दूसरे प्रभू की शरण में है।
आईये आज हम सच्चाई को सबको लाने की कोशिश करते है इसे जरूर पढे ध्यान से
पवित्र गीता जी ज्ञान दाता जहाँ अपनी महिमा का गुणगान करता है वह अपनी शक्ति का पर्दशन करता है जैसे एक मुख्यमंत्री अपने स्तर का और अपने राज्य क्षेत्र का बहुत विस्तार से वर्णन करता है।
लेकिन जहाँ पर गीता ज्ञान दाता अपने को किसी दूसरे परमात्मा की शरण में बताता है तो स्थिति ऐसी होती है जैसे एक मुख्यमंत्री जी अब महामहिम राष्ट्रपति जी की शक्ति का वर्णन कर रहे हो।
आओ देखते है कुछ श्लोक जिनमे गीता ज्ञान दाता ने खुद की किसी दूसरे परमात्मा की शरण में बताया है अथवा किसी परम शक्ति का वर्णन किया है 👇👇
अ•2 श्लोक 17
अ•8 श्लोक 3
अ•8 श्लोक 9
अ•8 श्लोक 22
अ• 15 श्लोक 4
अ• 15 श्लोक 17
अ• 17 श्लोक 23
अ• 18 श्लोक 46
अ• 18 श्लोक 62
अ• 18 श्लोक 66
हम सभी के घर मे पवित्र श्री मद् भगवत गीता है हम यह प्रमाण देख सकते है
#कौन_है_वह_परमेश्वर_जिसकी_शरण_में_जाने_को_गीता_ज्ञान_दाता_ने_इसारा_किया_है?
हमारा उद्देश्य भगत समाज को सही भक्ति विधि के बारे में बताना है शास्त्रानुकूल भक्ति के बारे में अवगत कराना है क्योकि सिर्फ मोक्ष शास्त्रानुकूल भक्ति से ही सम्भव है और वह भक्ति हमारे सद्ग्रंथो मे वर्णित है आवश्यकता है बस उसके ध्यान से पढने और समझने की।
मोक्ष सिर्फ शास्त्रानुकूल भक्ति से ही सम्भव है और अगर भक्ति शास्त्रानुकूल नही है तो मोक्ष बहुत दूर की बात हो जाती है फिर
आओ एक दो श्लोक का विश्लेषण करते है
हमारे गीताज्ञान वाचन ,मण्डलेश्वर कहते है भगवान श्री कृष्ण से अतिरिक्त कोई भगवान ही नहीं। कृष्ण जी ही स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं, वे अपनी ही शरण आने के लिए कह रहे हैं, बस कहने का फेर है। कृप्या भ्रम निवारण करें।
उत्तर:- ये माला डाल हुए हैं मुक्ता। षटदल उवा-बाई बकता।
आपके सर्व मण्डलेश्वर अर्थात् तथा शंकराचार्य अट-बट करके भोली जनता को भ्रमित कर रहे हैं। गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन को अपनी शरण में आने को कहता है, यह बिल्कुल गलत है क्योंकि गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि ‘हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ठीक से काम नहीं कर रही है। मैं आप का शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। जो मेरे हित में हो, वह ज्ञान मुझे दीजिए। हे धर्मदास! अर्जुन तो पहले ही श्री कृष्ण की शरण में था। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कहा है। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन तू मेरा भक्त है। इसलिए यह गीता शास्त्रा सुनाया है।
गीता ज्ञान दाता से अन्य पूर्ण परमात्मा का अन्य प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 से 28, 30, 31, 34 में भी है। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि शरीर को क्षेत्रा कहते हैैं जो इस क्षेत्रा अर्थात् शरीर को जानता है, उसे “क्षेत्राज्ञ” कहा जाता है। (गीता अध्याय 13 श्लोक 1)
गीता अध्याय 13 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि:- मैं क्षेत्राज्ञ हूँ। क्षेत्रा तथा क्षेत्राज्ञ दोनों को जानना ही तत्वज्ञान कहा जाता है, ऐसा मेरा मत है। गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी भक्ति अव्याभिचारिणी होनी चाहिए। जैसे अन्य देवताओं की साधना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में व्यर्थ कही हैं। केवल ब्रह्म की भक्ति करें। उसके विषय में यहाँ कहा है कि अन्य देवता में आसक्त न हों। भावार्थ है कि भक्ति व मुक्ति के लिए ज्ञान समझें, वक्ता बनने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त वक्ता बनने के लिए ज्ञान सुनना अज्ञान है।
गीता अध्याय 13 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से “परम ब्रह्म” का ज्ञान कराया है, जो परमात्मा (ज्ञेयम्) जानने योग्य है, जिसको जानकर (अमृतम् अश्नुते) अमरत्व प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष का अमृत जैसा आनन्द भोगने को मिलता है। उसको भली-भाँति कहूँगा। (तत्) वह दूसरा (ब्रह्म) परमात्मा न तो सत् कहा जाता है अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में कहा है कि जो तत्वज्ञान है, उसमें परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह तत्वज्ञान परमात्मा अपने मुख कमल से स्वयं उच्चारण करके बोलता है। उस तत्वज्ञान को तत्वदर्शी सन्त जानते हैं ।।
No comments:
Post a Comment